Wednesday, September 26, 2012

जादुई त्रिफला

यह पूरी स्रष्टि ही सत, रज एवं तम नामक तीन गुणों से बनी है। हमारा  शरीर भी तीन गुणों का बना हुआ है। आयुर्वेद में इन्हें वात, कफ और पित्त कहा जाता है। जब ये गुण सही मात्रा एवं अनुपात में होते हैं तो हम दैहिक, दैविक एवं भौतिक दुखों से दूर रहते हैं और जब इनका संतुलन ख़राब हो जाता है तब ये तीनों प्रकार की परेशानियाँ हमें घेरने लगतीं हैं। वात, कफ तथा पित्त को पुनः संतुलित कर के हम न केवल शारीरिक बीमारियों को दूर कर सकते हैं बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं। हाँ, यह जानकार आपको विशेष ख़ुशी होगी कि आध्यात्मिक पथ पर उन्नति करने वालों को विभिन्न सिद्धियाँ एवं शक्तियाँ सहज ही प्राप्त होती जाती हैं। गुणों के संतुलन तो पुनः प्राप्त करने के लिए हमारे ऋषियों ने कई प्रकार के योग बताये हैं। इन योगों को करने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रद्धा, विश्वास तथा साधना की आवश्यकता होती है, जो कि माया से घिरे हुए सामान्य व्यक्ति के लिए सहज नहीं है। अतः आयुर्वेद ने एक सरल एवं सहज उपाय बताया।

त्रिफला अर्थात तीन फल। हर्र, बहेड़ा एवं आंवला वे तीन फल हैं, जिनका ठीक तरह से प्रयोग कर हम वात, कफ एवं पित्त को पुनः संतुलित कर सकते हैं। मैंने अपने बचपन में सुना था कि त्रिफला के प्रयोग के द्वारा सफ़ेद हुए बाल पुनः काले हो जाते हैं। आधुनिक शिक्षा ने भले ही हमें कई लाभ दिए हों लेकिन  दुर्भाग्य से हमारे पुरातन ज्ञान को या तो नष्ट कर दिया है या फिर उसके चारों ओर अविश्वास का ऐसा वातावरण बना दिया है कि कोई सहज में विश्वास करने के लिए तैयार नहीं होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र मानता है कि जो बाल सफ़ेद हो गये हैं वे पुनः काले नहीं हो सकते हैं। मैं काफी लम्बे समय से त्रिफला के प्रयोग का वह सटीक तरीका ढूंढ रहा था जो कि इस आधुनिक विश्वास को जवाब दे सकता हो। कुछ दिन पहले ही जब यह तलाश पूरी हुयी तो यह भी ज्ञात हुआ कि बाल काले हो जाना तो त्रिफला का मात्र एक साइड इफेक्ट है, त्रिफला तो सचमुच में एक जादुई औषधि है जो कि सर्व व्याधियों का हरण करती है, पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है और साथ ही साथ आध्यात्मिक उन्नति भी करती है। तो यह लेख त्रिफला के सटीक प्रयोग एवं उसके लाभों के विषय में है। समझदार लोग इसका लाभ उठाएंगे। अधिक समझदार लोग अंग्रेजी पढेंगे। ध्यान रहे आप स्वतंत्र हैं, कुछ भी कर सकते हैं।

बनाने की विधि:
त्रिफला बनाने के लिये आपको सूखे हुये बड़ी हरड़, बहेड़ा और आंवला चाहिये। तीनों ही फल स्वच्छ एवं बिना कीड़े लगे होने चाहिये। इनकी गुठली निकाल दें एवं बचे हुये भाग का अलग-अलग चूर्ण बना लें। बारीक छने हुये तीनों प्रकार के चूर्णों को 1 : 2 : 4 के अनुपात में मिलायें। उदहारण के लिये यदि 10 ग्राम हरड का चूर्ण लेते हैं तो उसमें 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण और 40 ग्राम आंवले का चूर्ण मिलाएं। उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए इस अनुपात का ध्यान अवश्य रखें। एक बार में उतना ही चूर्ण तैयार करें जितना कि 4 महीने चल जाये। क्योंकि 4 महीने से अधिक पुराने चूर्ण की शक्ति क्षीण होने लगती है। बाज़ार में मिलने वाले बने बनाये चूर्ण पर उचित अनुपात का विश्वास नहीं रहता है तथा वह या उसके कुछ घटक चार महीने से अधिक पुराने हो सकते हैं। अतः चूर्ण घर पर बनाना ही श्रेष्ठ है।

खाने की विधि: 
किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति त्रिफला का सेवन कर सकता है। लेकिन एक बात तय है कि बेड टी की आदत छोड़नी होगी। दरअसल पूर्ण लाभ के लिये प्रातः सो के उठने के तुरंत बाद कुल्ला करके ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करना है। और फिर कम से कम एक घंटे तक किसी भी चीज का सेवन नहीं करना है। केवल पानी पी सकते हैं। मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जायेगा। जितने वर्ष की उम्र है उतने रत्ती त्रिफला का दिन में एक बार सेवन करना है। 1 रत्ती = 0.12 ग्राम। उदहारण के लिए यदि उम्र 50 वर्ष है, तो 50 * 0.12 = 6.0 ग्राम त्रिफला एक बार में खाना है। त्रिफला का पूर्ण कल्प 12 वर्ष का होता है तो 12 वर्ष तक लगातार सेवन कर सकते हैं।

ऋतु अनुकूलन:
हमारे देश में दो दो महीने की छः ऋतुयें होतीं हैं। प्रत्येक ऋतु में त्रिफला का अधिकाधिक लाभ संग्रहित करने के लिये शरीर का ऋतु के अनुकूल ढलना बेहतर होता है। अतः ऋतू अनुसार अतिरिक्त लाभ के लिये त्रिफला में अन्य चीजों को मिलाने का भी विधान है।

  1. चैत्र, वैसाख          -  वसंत ऋतु   - शहद से चाटना चाहिये।
  2. ज्येष्ठ, आषाढ़       -  ग्रीष्म ऋतू   - त्रिफला का 1/4 भाग गुड़ मिलाकर खाना चाहिये। 
  3. सावन, भादों        -  वर्षा ऋतू     - त्रिफला का 1/8 भाग सेंधा नमक मिलाना चाहिये।
  4. आश्विन, कार्तिक  -  शरद ऋतू    - त्रिफला का 1/6 भाग देशी खांड के साथ खाना चाहिये।
  5. अगहन, पौष        -  हेमंत ऋतू   - त्रिफला का 1/6 भाग सौंठ का चूर्ण मिलाना चाहिये।
  6. माघ, फाल्गुन      -  शिशिर ऋतू - त्रिफला का 1/8 भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाना चाहिये।

लाभ:
प्रथम वर्ष तन सुस्ती जाय। द्वितीय रोग सर्व मिट जाय।।
तृतीय नैन बहु ज्योति समावे। चतुर्थे सुन्दरताई आवे।।
पंचम वर्ष बुद्धि अधिकाई। षष्ठम महाबली हो जाई।।
श्वेत केश श्याम होय सप्तम। वृद्ध तन तरुण होई पुनि अष्टम।।
दिन में तारे देखें सही। नवम वर्ष फल अस्तुत कही।।
दशम शारदा कंठ विराजे। अन्धकार हिरदै का भाजे।।
जो एकादश द्वादश खाये। ताको वचन सिद्ध हो जाये।।

व्यक्तिगत सलाह:
विकारों (toxins) को शरीर से बाहर निकालना स्वास्थ्य प्राप्त करने का प्रथम सूत्र है। अतः त्रिफला सेवन प्रारंभ करने पर कुछ दिनों तक दिन में एक या दो बार पतले दस्त आना सामान्य बात है। अतः इसके लिये तैयार भी रहें। जैसे ही शरीर के विकार दूर होने लगेंगे दस्त आना भी बंद हो जायेंगे। कई बार व्यस्तता के कारण लोग इसके लिये तैयार नहीं होते हैं। दूसरी और त्रिफला में आंवला की मात्रा अधिक होने के कारण इसका प्रभाव ठंडा होता है। यह स्थिति भी कई लोगों को असहज लग सकती है। अतः उम्र के अनुसार जो भी मात्रा आप को लेनी चाहिये उसकी आधी मात्रा से प्रारंभ करना आसान हो सकता है। धीरे धीरे मात्रा बढ़ाते हुये एक महीने के अन्दर अपनी पूर्ण खुराक तक पहुँचना व्यवहारिक रहेगा। लेकिन सुबह सुबह खाली पेट सेवन एवं एक से दो घंटे तक ताजे पानी की अतिरिक्त और कुछ भी सेवन न करने के नियम का कठोरता से पालन अति आवश्यक है।


Courtesy: astrogle.com

यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जं तस्यौषधं हितम्।
जो प्राणी जहाँ जन्म लेता है उसके लिये वहीं की औषधियाँ हितकारी होतीं हैं।

Sunday, September 23, 2012

खोजे जी री पालड़ी

पुरानी कहानी है। खोजे जी बड़े ही शानदार ठाकुर थे। उनके गाँव का नाम ही 'खोजे जी की पालड़ी' था। खोजे जी के पूर्वजों ने अपनी वीरता, बहादुरी और सामाजिकता के बल पर यह गाँव बसाया था। आसपास के क्षेत्र में खोजे जी एवं खोजे जी की पालड़ी प्रसिद्द थी।

एक बार उनके गाँव के किसी खेत में बहुत बड़ा प्याज पैदा हुआ। लोग इतना बड़ा प्याज देख कर बड़े ही आश्चर्य चकित थे। लोग नहीं चाहते थे कि ऐसे अजीब प्याज को खा कर ख़त्म कर दिया जाए। वे तो चाहते थे कि इस  प्याज का कोई ऐसा उपयोग होना चाहिये जिससे उनके गाँव का नाम और भी रोशन हो जाये। खोजे जी भी इस बात से सहमत थे कि किसी भी तरह उनकी पालड़ी का नाम दूर दूर तक हो जाये। तो सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि यह प्याज राजा साहब को दिया जायेगा।

गाजे बाजे के साथ गाँव के लोग खोजे जी के साथ उस प्याज को लेकर राजा के दरबार में पहुंचे। राजा के दरबार में पूरे राज्य के लोग उपस्थित थे। सब लोगों ने उस प्याज को देखा और खोजे जी एवं अन्य किसानों की बड़ी तारीफ करी। शीघ्र ही यह खबर पूरे राज्य में फ़ैल गयी कि एक गाँव में एक बहुत बड़ा प्याज पैदा हुआ है। लोग एक दूसरे से पूछते कि यह गाँव कहाँ है, और लोग एक दूसरे को प्याज वाले गाँव का पता बताते।

धीरे धीरे राज्य के लगभग सभी लोग जान गये कि यह गाँव कहाँ है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कोई यह नहीं समझ पाया कि गाँव का असली नाम खोजे जी की पालड़ी है। वे तो उसे कांदे ( प्याज) की पालड़ी ही कहते। कहते हैं कि राजस्थान का यह गाँव आज भी कांदे की पालड़ी के नाम से प्रसिद्द है। उस गाँव का कोई निवासी अब यह नहीं जानता कि कभी खोजे जी ने अपनी वीरता, बहादुरी और सामाजिकता के बल पर यह गाँव बसाया था।

Courtesy: dreamstime.com

आप कमाया कामड़ा, किणने दीजे दोष। खोजे जी री पालड़ी, कांदे लीनी खोस।।

Thursday, September 13, 2012

सेना होरी कूदेंगे !

यह कहानी मैंने बुजुर्गों से सुनी थी। बात उस जमाने की है जब इस देश में अंग्रेजों का शासन हुआ करता था। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्रायः अनपढ़ ही होते थे। अज्ञानतावश वे अंग्रेज अधिकारियों को सेना (force) कहते थे। ऐसे ही एक अंग्रेज अधिकारी जो कि तहसील के किसी उच्च पद पर नियुक्त थे, आस पास के गावों में सेना के नाम से प्रसिद्ध थे। लोग उन्हें सेना ही कहा करते थे। प्रसिद्ध इसलिये थे क्योंकि उन साहब के आचरण ही ऐसे थे। जिधर भी वे निकल पड़ते, क्षेत्र के लोग भयभीत हो जाते। किसी की भी मारपीट करते रहना तो उनका प्रतिदिन का कार्यक्रम होता था। अलबत्ता जब कभी मन मचल जाता तो बहु-बेटियों की बेइज्जती भी करते रहते थे। जनता त्रस्त थी और श्रीमान जी आतंक का पर्याय बन चुके थे। ग्रामीणों को उनसे निजात पाने का सही रास्ता न सूझ पा रहा था। अंततोगत्वा क्षेत्र के चुनिन्दा बुद्धिमानों ने इस समस्या पर मंथन किया और एक रास्ता निकाला। उन्होंने कहा कि यह खबर फैलाना शुरू कर दो कि "सेना होरी कूदेंगे"। 

दरअसल कोई दो तीन महीने बाद ही होली थी। धीरे धीरे यह अफ़वाह फैलने लगी कि सेना होरी कूदेंगे। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या होने वाला था या इस बात का क्या मतलब था। लेकिन हर जुबान पर बस एक ही बात थी कि सेना होरी कूदेंगे। बात अधिकारी महोदय के कान तक भी पहुंची कि गावों में बड़ा प्रचार है कि सेना होरी कूदेंगे। बात का मतलब उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा था। कहते हैं कि ताकत के साथ मद भी आता है। और मद बुद्धि को मंद या बिलकुल बंद कर देता है। वह तो केवल अपने दायरे के अन्दर ही सोच पाता है। श्रीमान जी को यह लगा की शायद ग्रामीण लोग भय के कारण मुझे खुश करने का कुछ उपाय करने वाले हैं। होली के अवसर पर कुछ सादर सत्कार करेंगे या शायद कोई 'विशेष' सेवा का भी इंतजाम हो। उनके मन में लड्डुओं के ढेर फूट रहे थे। चैन नहीं पड़ रहा था की कब होली आये और कब अपनी ताकत का परिणाम भोगने को मिले।

ठीक जिस रात होली जलाई जाने वाली थी अधिकारी महोदय सज धज कर घोड़े पे बैठ अकेले ही उस स्थान की ओर चल दिए जहाँ आसपास के गावों की सम्मिलित होली जला करती थी। लोगों ने उनका बड़ा सत्कार किया। उन्हें ही होली को प्रथम अग्नि लगाने का अवसर दिया गया। और जैसे ही होली खूब तेज जलने लगी चार पांच लोगों ने उन्हें उठा कर जलती हुयी होली में रख दिया। क्षेत्र की समस्या होली के साथ जल गयी।

बहुत बड़ी घटना हो गयी। एक काबिल अधिकारी मारा गया। प्रशासन हिल गया। एस आई टी का गठन कर दिया गया। जांच शुरू हो गयी। सी आई डी लगा दी गयी ........ लेकिन बच्चे से, बूढ़े से, दुकानदार से जिससे भी पूछा जाता वो तो बस एक ही जवाब देता "पता नहीं साहब, यह बात तो कई महीनों से फैली थी कि सेना होरी कूदेंगे। लगता है कूदे होंगे। वैसे थे बड़े बहादुर। क्षेत्र के सब लोग उनसे डरते थे।"


Courtesy: militaryhorse.org

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ऐ -जहाँ हमारा।