Sunday, August 21, 2011

ढाई घर की चालें और दिल्ली की दूरी

समय की गंभीरता देखते हुए पुराने चेहरे और पुरानी रणनीति दोनों बदल दिये गये हैं. प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि सशक्त एवं प्रभावी लोकपाल बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सरकार  समझ गयी है कि इस बार दमन की नीति नहीं चलेगी... लेकिन बहानों का रास्ता अभी खुला है. "अच्छे बहाने चाहिए." विज्ञापन आ चुका है. विज्ञापन बहुत ही गज़ब का बहाना है. साथ में प्रतिबद्धता का बोनस भी है. लेकिन कथनी करनी की भिन्नता ही तो प्रमुख समस्या है. आपका पुराना लोकपाल आपकी प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है. सामनीति की खाल के भीतर से भेदनीति की गुर्राहट आ रही है. 

शराब पुरानी ही है. प्रक्रिया का तकाजा है, आखिर 'सभ्य समाज' ही तो देश नहीं है... और भी तो रहते हैं यहाँ. बात  जब जनता ने ही तय करनी है तो अवसर सबको मिलना चाहिए... इस लिए प्रक्रिया है.. प्रक्रिया है तो समय भी लगेगा... और समय?.वो आपके  पास है नहीं क्योंकि आप अनशन पर सवार हैं. इसलिए सरकार ने यह तय किया है कि अपनी समस्या का आप स्वयं समाधान करिये... श्री श्री को ख़ुशी होगी. रही बात विपक्ष के ओजस्वी वक्ताओं की तो जो कल यह कह रहे थे कि शांतिपूर्ण विरोध जनता का मौलिक अधिकार है, वे यह भी तो समझेंगे कि एक व्यक्ति की भूख हड़ताल से देशव्यापी निर्णय नहीं किये जाते है. विज्ञापन का मोहरा तो सीधा है लेकिन चाल बड़ी गहरी है.

अन्ना पहले से तय कर के आये हैं कि इस बार वादों में नहीं उलझना है, परिणाम आना चाहिए. रामलीला मैदान पहुंचते ही अन्ना ने घोषणा कर दी कि अनुमति भले ही पंद्रह दिन की हो, जब तक पूरी रामलीला समाप्त नहीं हो जाएगी मैदान नहीं छोड़ेंगे.  अन्ना ने अपने सिपाहियों को भरोसा दिला दिया है कि पंद्रह दिन तक खाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी... लोगों को जोड़ते रहिये.... प्रतिक्रिया हो रही है. अभी बहुत हैं जो जानते हैं कि लोकपाल के लिए जान लड़ाना ठीक नहीं है. ये भी बेवफा निकल सकता है. लेकिन अन्ना के पास एक और नब्ज है...'चुनाव प्रक्रिया सुधार' की नब्ज.. 'कुर्सी उतार अधिकार' की नब्ज. अगर किसी भी रूप में देश की चिंता है, तो आप लोकपाल में हमारा सहयोग करिये हम आपसे आपके तर्क के लिए लड़ने का वादा करते है.. जनता जुड़ती रहनी चाहिए. भीड़ बढ़ती रहनी चाहिये.  'सभ्य समाज' जानता है कि जनता है  तो जीत है.

अन्ना पांच दिन से भूखे हैं. गंगा में ढेरों पानी बह गया है. बात अभी वहीँ अटकी है... लोकतंत्र में कौन बड़ा है? प्रक्रिया या जनता! ...चलो कोई बात नहीं, आपको उत्तर मालूम है. लेकिन जनता क्या चाहती है, इसको जानने का सही तरीका क्या है? किससे पूछें? जो झंडे हिला रहे हैं, उनसे? या जो यातायात में फंसे हैं उनसे? कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिये! एक पक्ष कह रहा है कि आप की जनता पर भरोसा नहीं है. दूसरा कह रहा है  कि आपकी प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है. दोनों एक  दूसरे के माल को दूषित बता रहे हैं. दोनों अपना माल गलाना चाहते हैं. समझौते के बिना यह सौदा होना संभव नहीं है. सम्बन्ध तो बेचारे फ़रवरी में ही ख़राब हो चुके हैं..बातचीत बंद की धमकियां दोनों ओर से उड़ रहीं हैं. कांटा शून्य से आगे नहीं बढ़ सकता ...जब तक बहस है कुछ नहीं हो सकता. चिंतन होना चाहिए. अन्ना ने किया..तो अन्ना ने ना खाने और ना खाने देने का निर्णय लिया. दिन प्रतिदिन अन्ना को जनता का सहयोग बढ़ता जा रहा है. सरकार ने बहस की तो अपना लोकपाल छोड़ जनता से विचार माँगने पड़े...अभी भी अवसर है...प्रधानमंत्री जी! बहस की प्रक्रियायों से समय निकालिए. कभी राजघाट पर बैठ कर ध्यान करने का प्रयास करिये. बापू की आत्मा को सुनिये. जनता से संयम करिये...कभी आप भी तो ऐसा करिये..फिर प्रक्रिया चुनिये. प्रजातंत्र में प्रक्रिया वही है जो जनता का मन पहचाने.




जो कार्य करते श्रेष्ठ जन, करते वही हैं और भी.
उनके प्रमाणित पंथ पर ही पैर धरते हैं सभी.
- श्रीहरिगीता अध्याय-३ श्लोक-२१

Keywords: Anna, Hazare, India Against Corruption, Civil Society, Lokpal, Democracy

3 comments:

  1. जब तक बहस है कुछ नहीं हो सकता. चिंतन होना चाहिए.
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    जब महाकाली का समय आता है तो सब बहुत तेजी से चलता है। मां काली के पदाघात से अशुभ और शुभ दोनो धराशायी होते हैं। दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
    चिंतन तो सृजन का अंग है - महासरस्वती का कार्यक्षेत्र। उनका कार्य धीमा और श्रमसाध्य है। वह बाद में!

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  2. If the government is sincere it should send a couple of persons directly at Ramlila and discuss things with Anna team in full public view. Whatever result comes should be implemented.

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  3. Rare are such moments when some people create history,some become positively added to history by chance but some are dumped in to the dustbins of history. Now this is up to present government and parliamentarians to decide how should they be remembered by coming generations.

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कृपया उत्साहवर्धन भी कर दीजिये।