Friday, August 26, 2011

समाधान की समस्या के अंधे मोड़

इस दुनिया में "लज्जा" करने के लिए इतने कारण उपलब्ध हैं कि कोई चाहे तो अपना पूरा जीवन भांति भांति के विषयों पर लज्जा कर के बिता सकता है. किन्तु कभी कभी ऐसी घटनाएँ सामने आ जाती हैं कि लज्जा स्वाभाविक रूप से आ ही जाती है..ऐसी ही एक घटना तब घटी जब अन्ना ने प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह, नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज एवं लोकसभा अध्यक्षा आदरणीय मीरा कुमार सहित संपूर्ण सदन की भावपूर्ण विनती अस्वीकार करते हुए  अपना अनशन जारी रखने की घोषणा की. कई कीर्तिजीवी लोगों के हाथों के तोते सदन के इस ऐतिहासिक आचरण को देख कर उड़ गए. ज्ञानीगण इतने उत्साहित थे कि सरकार के कर्तव्यों की इतिश्री समझ गेंद अन्ना के पाले में बताने लगे. लेकिन  दस दिन के भूखे अन्ना ने कह दिया कि ये घास न केवल बासी है बल्कि इसके असली होने पर भी संदेह है. राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था की साख की इतनी बुरी दुर्दशा किसी भी नागरिक के लिए अवश्य ही महान लज्जा का विषय है.

अपने पूर्वाचरणों से समूचा सदन अपनी साख इतनी गवां चुका है कि  अन्ना को उसकी कथनी पर विश्वास नहीं है. अन्ना ही क्यों सारा देश देख रहा है कि किस तरह से मात्र बारह घंटे पहले ही अन्ना के सहयोगियों के मुंह प्रणब मुखर्जी की डांट सुन कर उतरे हुए थे. दस दिन पहले ही जिस सरकार ने अन्ना को तिहाड़ के दर्शन कराये थे, पंद्रह दिन पहले जिस सरकार का अदना सा प्रवक्ता; किशन बाबू राव हजारे उर्फ़ अन्ना को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा बता रहा था, प्रारंभ से ही जिसके वितर्क मंत्री अन्ना को अनिर्वाचित तानाशाह बता रहे थे; आज अगर उस सरकार का मुखिया अन्ना को सलाम कर भी रहा है तो भी कोई कैसे विश्वास कर ले. अन्ना ने साफ़ कह दिया कि इज्जत बख्सने के लिए तो धन्यवाद है, किन्तु काम इतने से चलने वाला नहीं है. यदि आप गंभीर हैं तो कल से सदन में जनलोकपाल पर चर्चा प्रारंभ करिए. साथ में आप अन्य संस्करणों के बिन्दुओं पर भी चर्चा कर सकते हैं. किन्तु हर हाल में जनलोकपाल या उसका निकटतम रूप ही पास होना चाहिए. प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को घात लगाये देख अन्ना ने अभी से अपना द्रष्टिकोण साफ़ करने की चेतावनी दे दी. हवा की राजनीति करने वालों ने तुरंत ही आंधी की तरफ पीठ करना उचित समझा और जनलोकपाल को अपना समर्थन देने की खुली घोषणा कर दी.

विराट जनआक्रोश केवल राजनेताओं को ही सोचने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है, बल्कि 'सभ्य समाज' और अन्ना भी आशातीत समर्थन को अपने अपने नज़रिए से देख रहे हैं. किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल  को जहाँ इतिहास में नाम दर्ज करने की जल्दी है और इसलिए अभी नहीं तो कभी नहीं का नारा दे रहे हैं, वहीँ अन्ना चतुर राजनेताओं के साथ दोहरी चाल खेलना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि यदि आप सचमुच लोकपाल पर गंभीर हैं तो आपको उस पर वाद-विवाद और चर्चा करने का पूर्ण अवसर मिलना चाहिए. ताकि सभ्य समाज द्वारा बनाये गए प्रावधानों का कानून बनने से पहले परीक्षण हो सके. आप जनलोकपाल पर बहस प्रारंभ करिये मैं  समय देने के लिए अपना अनशन समाप्त कर दूंगा.  और यदि फिर धोखा देते हैं, तो हमें एक बार फिर नए सिरे से लडाई प्रारंभ करने का अवसर मिलेगा. और अगली बार बात सिर्फ लोकपाल की नहीं होगी, बल्कि सम्पूर्ण क्रांति की होगी..जिस असली आज़ादी की बात होती है, अगली लड़ाई उस आज़ादी के लिए होगी. जिस  लड़ाई के मुद्दे व्यापक होंगे, समर्थन और भी व्यापक होगा..एक और भी बड़ा जनसैलाब होगा.

लोकपाल वह ऐतिहासिक कानून होगा जिसके बनने से पहले ही बच्चा बच्चा उसके प्रावधानों को समझ चुका है. भ्रष्टाचार के दांत आज से पहले कभी इतने खट्टे नहीं हुए. जनता और अन्ना दोनों अपनी लड़ाई सैद्धांतिक स्तर पर जीत चुके हैं. अब तो इसको व्यवहारिक एवं तर्कपूर्ण रूप देना 'सभ्य समाज' और सदन की जिम्मेदारी है. सदन की समय और प्रक्रिया की मांग और सभ्य समाज की जिद प्रथम द्रष्टया तो जायज़ है किन्तु व्यक्तिगत रायों के चलते अविश्वसनीय भी है....बड़ी चीज़ या तो जनता है या फिर अन्ना. सारी संसदीय प्रक्रियाएं जनता के लिए हैं, जनता संसदीय प्रक्रियाओं के लिए नहीं है. सभ्य समाज और सदन कुछ भी चाहे अब तो इस देश में वही होगा जो जनता चाहेगी. अन्ना इस बात को जानते हैं.....क्यों?.............. क्योंकि अन्ना भारत हैं.


आसक्ति सब तज, सिद्धि और असिद्धि मान अपमान भी,
योगस्थ होकर कर्म कर,             है योग समता-ज्ञान ही.

-श्रीहरिगीता 
Keywords: Anna, Hazare, India Against Corruption, Civil Society, Lokpal, Democracy

1 comment:

  1. Seems you know a lot and now you are also learning how to express it. Carry on.

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कृपया उत्साहवर्धन भी कर दीजिये।