यह पूरी स्रष्टि ही सत, रज एवं तम नामक तीन गुणों से बनी है। हमारा शरीर भी तीन गुणों का बना हुआ है। आयुर्वेद में इन्हें वात, कफ और पित्त कहा जाता है। जब ये गुण सही मात्रा एवं अनुपात में होते हैं तो हम दैहिक, दैविक एवं भौतिक दुखों से दूर रहते हैं और जब इनका संतुलन ख़राब हो जाता है तब ये तीनों प्रकार की परेशानियाँ हमें घेरने लगतीं हैं। वात, कफ तथा पित्त को पुनः संतुलित कर के हम न केवल शारीरिक बीमारियों को दूर कर सकते हैं बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं। हाँ, यह जानकार आपको विशेष ख़ुशी होगी कि आध्यात्मिक पथ पर उन्नति करने वालों को विभिन्न सिद्धियाँ एवं शक्तियाँ सहज ही प्राप्त होती जाती हैं। गुणों के संतुलन तो पुनः प्राप्त करने के लिए हमारे ऋषियों ने कई प्रकार के योग बताये हैं। इन योगों को करने के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रद्धा, विश्वास तथा साधना की आवश्यकता होती है, जो कि माया से घिरे हुए सामान्य व्यक्ति के लिए सहज नहीं है। अतः आयुर्वेद ने एक सरल एवं सहज उपाय बताया।
त्रिफला अर्थात तीन फल। हर्र, बहेड़ा एवं आंवला वे तीन फल हैं, जिनका ठीक तरह से प्रयोग कर हम वात, कफ एवं पित्त को पुनः संतुलित कर सकते हैं। मैंने अपने बचपन में सुना था कि त्रिफला के प्रयोग के द्वारा सफ़ेद हुए बाल पुनः काले हो जाते हैं। आधुनिक शिक्षा ने भले ही हमें कई लाभ दिए हों लेकिन दुर्भाग्य से हमारे पुरातन ज्ञान को या तो नष्ट कर दिया है या फिर उसके चारों ओर अविश्वास का ऐसा वातावरण बना दिया है कि कोई सहज में विश्वास करने के लिए तैयार नहीं होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र मानता है कि जो बाल सफ़ेद हो गये हैं वे पुनः काले नहीं हो सकते हैं। मैं काफी लम्बे समय से त्रिफला के प्रयोग का वह सटीक तरीका ढूंढ रहा था जो कि इस आधुनिक विश्वास को जवाब दे सकता हो। कुछ दिन पहले ही जब यह तलाश पूरी हुयी तो यह भी ज्ञात हुआ कि बाल काले हो जाना तो त्रिफला का मात्र एक साइड इफेक्ट है, त्रिफला तो सचमुच में एक जादुई औषधि है जो कि सर्व व्याधियों का हरण करती है, पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है और साथ ही साथ आध्यात्मिक उन्नति भी करती है। तो यह लेख त्रिफला के सटीक प्रयोग एवं उसके लाभों के विषय में है। समझदार लोग इसका लाभ उठाएंगे। अधिक समझदार लोग अंग्रेजी पढेंगे। ध्यान रहे आप स्वतंत्र हैं, कुछ भी कर सकते हैं।
बनाने की विधि:
त्रिफला बनाने के लिये आपको सूखे हुये बड़ी हरड़, बहेड़ा और आंवला चाहिये। तीनों ही फल स्वच्छ एवं बिना कीड़े लगे होने चाहिये। इनकी गुठली निकाल दें एवं बचे हुये भाग का अलग-अलग चूर्ण बना लें। बारीक छने हुये तीनों प्रकार के चूर्णों को 1 : 2 : 4 के अनुपात में मिलायें। उदहारण के लिये यदि 10 ग्राम हरड का चूर्ण लेते हैं तो उसमें 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण और 40 ग्राम आंवले का चूर्ण मिलाएं। उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए इस अनुपात का ध्यान अवश्य रखें। एक बार में उतना ही चूर्ण तैयार करें जितना कि 4 महीने चल जाये। क्योंकि 4 महीने से अधिक पुराने चूर्ण की शक्ति क्षीण होने लगती है। बाज़ार में मिलने वाले बने बनाये चूर्ण पर उचित अनुपात का विश्वास नहीं रहता है तथा वह या उसके कुछ घटक चार महीने से अधिक पुराने हो सकते हैं। अतः चूर्ण घर पर बनाना ही श्रेष्ठ है।
खाने की विधि:
किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति त्रिफला का सेवन कर सकता है। लेकिन एक बात तय है कि बेड टी की आदत छोड़नी होगी। दरअसल पूर्ण लाभ के लिये प्रातः सो के उठने के तुरंत बाद कुल्ला करके ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करना है। और फिर कम से कम एक घंटे तक किसी भी चीज का सेवन नहीं करना है। केवल पानी पी सकते हैं। मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जायेगा। जितने वर्ष की उम्र है उतने रत्ती त्रिफला का दिन में एक बार सेवन करना है। 1 रत्ती = 0.12 ग्राम। उदहारण के लिए यदि उम्र 50 वर्ष है, तो 50 * 0.12 = 6.0 ग्राम त्रिफला एक बार में खाना है। त्रिफला का पूर्ण कल्प 12 वर्ष का होता है तो 12 वर्ष तक लगातार सेवन कर सकते हैं।
ऋतु अनुकूलन:
हमारे देश में दो दो महीने की छः ऋतुयें होतीं हैं। प्रत्येक ऋतु में त्रिफला का अधिकाधिक लाभ संग्रहित करने के लिये शरीर का ऋतु के अनुकूल ढलना बेहतर होता है। अतः ऋतू अनुसार अतिरिक्त लाभ के लिये त्रिफला में अन्य चीजों को मिलाने का भी विधान है।
बनाने की विधि:
त्रिफला बनाने के लिये आपको सूखे हुये बड़ी हरड़, बहेड़ा और आंवला चाहिये। तीनों ही फल स्वच्छ एवं बिना कीड़े लगे होने चाहिये। इनकी गुठली निकाल दें एवं बचे हुये भाग का अलग-अलग चूर्ण बना लें। बारीक छने हुये तीनों प्रकार के चूर्णों को 1 : 2 : 4 के अनुपात में मिलायें। उदहारण के लिये यदि 10 ग्राम हरड का चूर्ण लेते हैं तो उसमें 20 ग्राम बहेड़े का चूर्ण और 40 ग्राम आंवले का चूर्ण मिलाएं। उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए इस अनुपात का ध्यान अवश्य रखें। एक बार में उतना ही चूर्ण तैयार करें जितना कि 4 महीने चल जाये। क्योंकि 4 महीने से अधिक पुराने चूर्ण की शक्ति क्षीण होने लगती है। बाज़ार में मिलने वाले बने बनाये चूर्ण पर उचित अनुपात का विश्वास नहीं रहता है तथा वह या उसके कुछ घटक चार महीने से अधिक पुराने हो सकते हैं। अतः चूर्ण घर पर बनाना ही श्रेष्ठ है।
खाने की विधि:
किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति त्रिफला का सेवन कर सकता है। लेकिन एक बात तय है कि बेड टी की आदत छोड़नी होगी। दरअसल पूर्ण लाभ के लिये प्रातः सो के उठने के तुरंत बाद कुल्ला करके ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करना है। और फिर कम से कम एक घंटे तक किसी भी चीज का सेवन नहीं करना है। केवल पानी पी सकते हैं। मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जायेगा। जितने वर्ष की उम्र है उतने रत्ती त्रिफला का दिन में एक बार सेवन करना है। 1 रत्ती = 0.12 ग्राम। उदहारण के लिए यदि उम्र 50 वर्ष है, तो 50 * 0.12 = 6.0 ग्राम त्रिफला एक बार में खाना है। त्रिफला का पूर्ण कल्प 12 वर्ष का होता है तो 12 वर्ष तक लगातार सेवन कर सकते हैं।
ऋतु अनुकूलन:
हमारे देश में दो दो महीने की छः ऋतुयें होतीं हैं। प्रत्येक ऋतु में त्रिफला का अधिकाधिक लाभ संग्रहित करने के लिये शरीर का ऋतु के अनुकूल ढलना बेहतर होता है। अतः ऋतू अनुसार अतिरिक्त लाभ के लिये त्रिफला में अन्य चीजों को मिलाने का भी विधान है।
- चैत्र, वैसाख - वसंत ऋतु - शहद से चाटना चाहिये।
- ज्येष्ठ, आषाढ़ - ग्रीष्म ऋतू - त्रिफला का 1/4 भाग गुड़ मिलाकर खाना चाहिये।
- सावन, भादों - वर्षा ऋतू - त्रिफला का 1/8 भाग सेंधा नमक मिलाना चाहिये।
- आश्विन, कार्तिक - शरद ऋतू - त्रिफला का 1/6 भाग देशी खांड के साथ खाना चाहिये।
- अगहन, पौष - हेमंत ऋतू - त्रिफला का 1/6 भाग सौंठ का चूर्ण मिलाना चाहिये।
- माघ, फाल्गुन - शिशिर ऋतू - त्रिफला का 1/8 भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाना चाहिये।
लाभ:
प्रथम वर्ष तन सुस्ती जाय। द्वितीय रोग सर्व मिट जाय।।
तृतीय नैन बहु ज्योति समावे। चतुर्थे सुन्दरताई आवे।।
पंचम वर्ष बुद्धि अधिकाई। षष्ठम महाबली हो जाई।।
श्वेत केश श्याम होय सप्तम। वृद्ध तन तरुण होई पुनि अष्टम।।
दिन में तारे देखें सही। नवम वर्ष फल अस्तुत कही।।
दशम शारदा कंठ विराजे। अन्धकार हिरदै का भाजे।।
जो एकादश द्वादश खाये। ताको वचन सिद्ध हो जाये।।
व्यक्तिगत सलाह:
विकारों (toxins) को शरीर से बाहर निकालना स्वास्थ्य प्राप्त करने का प्रथम सूत्र है। अतः त्रिफला सेवन प्रारंभ करने पर कुछ दिनों तक दिन में एक या दो बार पतले दस्त आना सामान्य बात है। अतः इसके लिये तैयार भी रहें। जैसे ही शरीर के विकार दूर होने लगेंगे दस्त आना भी बंद हो जायेंगे। कई बार व्यस्तता के कारण लोग इसके लिये तैयार नहीं होते हैं। दूसरी और त्रिफला में आंवला की मात्रा अधिक होने के कारण इसका प्रभाव ठंडा होता है। यह स्थिति भी कई लोगों को असहज लग सकती है। अतः उम्र के अनुसार जो भी मात्रा आप को लेनी चाहिये उसकी आधी मात्रा से प्रारंभ करना आसान हो सकता है। धीरे धीरे मात्रा बढ़ाते हुये एक महीने के अन्दर अपनी पूर्ण खुराक तक पहुँचना व्यवहारिक रहेगा। लेकिन सुबह सुबह खाली पेट सेवन एवं एक से दो घंटे तक ताजे पानी की अतिरिक्त और कुछ भी सेवन न करने के नियम का कठोरता से पालन अति आवश्यक है।
Courtesy: astrogle.com |
यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जं तस्यौषधं हितम्।
जो प्राणी जहाँ जन्म लेता है उसके लिये वहीं की औषधियाँ हितकारी होतीं हैं।