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Sunday, September 23, 2012

खोजे जी री पालड़ी

पुरानी कहानी है। खोजे जी बड़े ही शानदार ठाकुर थे। उनके गाँव का नाम ही 'खोजे जी की पालड़ी' था। खोजे जी के पूर्वजों ने अपनी वीरता, बहादुरी और सामाजिकता के बल पर यह गाँव बसाया था। आसपास के क्षेत्र में खोजे जी एवं खोजे जी की पालड़ी प्रसिद्द थी।

एक बार उनके गाँव के किसी खेत में बहुत बड़ा प्याज पैदा हुआ। लोग इतना बड़ा प्याज देख कर बड़े ही आश्चर्य चकित थे। लोग नहीं चाहते थे कि ऐसे अजीब प्याज को खा कर ख़त्म कर दिया जाए। वे तो चाहते थे कि इस  प्याज का कोई ऐसा उपयोग होना चाहिये जिससे उनके गाँव का नाम और भी रोशन हो जाये। खोजे जी भी इस बात से सहमत थे कि किसी भी तरह उनकी पालड़ी का नाम दूर दूर तक हो जाये। तो सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि यह प्याज राजा साहब को दिया जायेगा।

गाजे बाजे के साथ गाँव के लोग खोजे जी के साथ उस प्याज को लेकर राजा के दरबार में पहुंचे। राजा के दरबार में पूरे राज्य के लोग उपस्थित थे। सब लोगों ने उस प्याज को देखा और खोजे जी एवं अन्य किसानों की बड़ी तारीफ करी। शीघ्र ही यह खबर पूरे राज्य में फ़ैल गयी कि एक गाँव में एक बहुत बड़ा प्याज पैदा हुआ है। लोग एक दूसरे से पूछते कि यह गाँव कहाँ है, और लोग एक दूसरे को प्याज वाले गाँव का पता बताते।

धीरे धीरे राज्य के लगभग सभी लोग जान गये कि यह गाँव कहाँ है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कोई यह नहीं समझ पाया कि गाँव का असली नाम खोजे जी की पालड़ी है। वे तो उसे कांदे ( प्याज) की पालड़ी ही कहते। कहते हैं कि राजस्थान का यह गाँव आज भी कांदे की पालड़ी के नाम से प्रसिद्द है। उस गाँव का कोई निवासी अब यह नहीं जानता कि कभी खोजे जी ने अपनी वीरता, बहादुरी और सामाजिकता के बल पर यह गाँव बसाया था।

Courtesy: dreamstime.com

आप कमाया कामड़ा, किणने दीजे दोष। खोजे जी री पालड़ी, कांदे लीनी खोस।।

Thursday, September 13, 2012

सेना होरी कूदेंगे !

यह कहानी मैंने बुजुर्गों से सुनी थी। बात उस जमाने की है जब इस देश में अंग्रेजों का शासन हुआ करता था। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्रायः अनपढ़ ही होते थे। अज्ञानतावश वे अंग्रेज अधिकारियों को सेना (force) कहते थे। ऐसे ही एक अंग्रेज अधिकारी जो कि तहसील के किसी उच्च पद पर नियुक्त थे, आस पास के गावों में सेना के नाम से प्रसिद्ध थे। लोग उन्हें सेना ही कहा करते थे। प्रसिद्ध इसलिये थे क्योंकि उन साहब के आचरण ही ऐसे थे। जिधर भी वे निकल पड़ते, क्षेत्र के लोग भयभीत हो जाते। किसी की भी मारपीट करते रहना तो उनका प्रतिदिन का कार्यक्रम होता था। अलबत्ता जब कभी मन मचल जाता तो बहु-बेटियों की बेइज्जती भी करते रहते थे। जनता त्रस्त थी और श्रीमान जी आतंक का पर्याय बन चुके थे। ग्रामीणों को उनसे निजात पाने का सही रास्ता न सूझ पा रहा था। अंततोगत्वा क्षेत्र के चुनिन्दा बुद्धिमानों ने इस समस्या पर मंथन किया और एक रास्ता निकाला। उन्होंने कहा कि यह खबर फैलाना शुरू कर दो कि "सेना होरी कूदेंगे"। 

दरअसल कोई दो तीन महीने बाद ही होली थी। धीरे धीरे यह अफ़वाह फैलने लगी कि सेना होरी कूदेंगे। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या होने वाला था या इस बात का क्या मतलब था। लेकिन हर जुबान पर बस एक ही बात थी कि सेना होरी कूदेंगे। बात अधिकारी महोदय के कान तक भी पहुंची कि गावों में बड़ा प्रचार है कि सेना होरी कूदेंगे। बात का मतलब उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा था। कहते हैं कि ताकत के साथ मद भी आता है। और मद बुद्धि को मंद या बिलकुल बंद कर देता है। वह तो केवल अपने दायरे के अन्दर ही सोच पाता है। श्रीमान जी को यह लगा की शायद ग्रामीण लोग भय के कारण मुझे खुश करने का कुछ उपाय करने वाले हैं। होली के अवसर पर कुछ सादर सत्कार करेंगे या शायद कोई 'विशेष' सेवा का भी इंतजाम हो। उनके मन में लड्डुओं के ढेर फूट रहे थे। चैन नहीं पड़ रहा था की कब होली आये और कब अपनी ताकत का परिणाम भोगने को मिले।

ठीक जिस रात होली जलाई जाने वाली थी अधिकारी महोदय सज धज कर घोड़े पे बैठ अकेले ही उस स्थान की ओर चल दिए जहाँ आसपास के गावों की सम्मिलित होली जला करती थी। लोगों ने उनका बड़ा सत्कार किया। उन्हें ही होली को प्रथम अग्नि लगाने का अवसर दिया गया। और जैसे ही होली खूब तेज जलने लगी चार पांच लोगों ने उन्हें उठा कर जलती हुयी होली में रख दिया। क्षेत्र की समस्या होली के साथ जल गयी।

बहुत बड़ी घटना हो गयी। एक काबिल अधिकारी मारा गया। प्रशासन हिल गया। एस आई टी का गठन कर दिया गया। जांच शुरू हो गयी। सी आई डी लगा दी गयी ........ लेकिन बच्चे से, बूढ़े से, दुकानदार से जिससे भी पूछा जाता वो तो बस एक ही जवाब देता "पता नहीं साहब, यह बात तो कई महीनों से फैली थी कि सेना होरी कूदेंगे। लगता है कूदे होंगे। वैसे थे बड़े बहादुर। क्षेत्र के सब लोग उनसे डरते थे।"


Courtesy: militaryhorse.org

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ऐ -जहाँ हमारा।

Wednesday, September 21, 2011

छाँव में जाना छाँव में आना.

लीजिये साहब पहले तो आप ये सलाहें पढिये. अगर आप इन पर आचरण कर सके तो एक-एक सलाह लाखों की हो सकती है.

१. छाँव में जाना छाँव में आना.
२. मीठा खाना.
३. उधार दे कर मांगना नहीं.
४. मकराने में गढ़ा है निकाल लेना.

क्या बात है? .... चौंक गए? कुछ अजीब है ना...पहली बार जब मैंने किसी जगह इन सलाहों का स्टीकर देखा तो मैं भी चौंक गया था. भला हो उस आदमी का जिसने इन सलाहों की कहानी सुनायी. तो यदि आप ये अमूल्य सलाहें समझना चाहते हैं तो उस कहानी को पढिये.

एक सेठ जी थे. और एक उनका पुत्र था. सेठ जी मंझे हुए व्यापारी थे. घर पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी ही रहती थी. पुत्र इकलौता था सो लाड़ प्यार का मजा उठाता रहता था. कभी कुछ सीखने की इच्छा रहती नहीं थी. अचानक किसी बीमारी के चलते सेठ जी को यह महसूस हुआ की अब उनका समय नजदीक ही है. सेठ जी को चिंता हुई कि उन्होंने अपने पुत्र को तो कुछ सिखाया नहीं है. उनके बाद वह व्यापार को कैसे संभालेगा? और जीवन का फ़लसफ़ा इतनी जल्दी सिखाया भी नहीं जा सकता....सोच विचार करके उन्होंने ये चार सलाहें एक कागज पर लिखीं, और अपने पुत्र को बुला कर कहा कि यदि मेरी मृत्यु हो जाये तो तुम इस कागज को पढ़ना और  इस में लिखी सलाहों पर अमल करना. तुम्हारे जीवन में कोई समस्या नहीं आयेगी. शीघ्र ही वह समय आ गया जब सेठ जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा. संस्कारों से निवृत होकर छोटे सेठ ने पिता के दिये हुए कागज को पढ़ा तो उसने अपने लिये इन चार सलाहों को लिखा पाया. पहली तीन सलाहें पढ़ते ही उसे अपने प्रति पिता का प्रेम याद आ गया. उसने सोचा कि पिता जी नहीं चाहते थे कि उनका इकलौता लाड़ला बेटा जीवन में कोई कष्ट उठाये इसलिये हमेशा छाँव में ही आने जाने, मीठा खाने और उधार दिये पैसे को माँगने के चक्कर में न पड़ने की सलाह देकर गये हैं. चौथी सलाह उसको समझ में नहीं आयी साथ ही उसे समझने की कोई जरूरत भी महसूस नहीं हुयी. उसे लगा कि फिलहाल तीन सलाहें ही उसके जीवन को आराम और खुशियों से भरने के लिये पर्याप्त थीं. उसे तो बस शीघ्र ही सलाहों पर अमल करते हुए कारोबार संभालना चाहिए.

पहली सलाह पर अमल करते हुये छोटे सेठ ने दिन में निकलना कम कर दिया. नगर की जिन सड़कों पर उसका रोज आना जाना होता था, उन पर छत बनवा दी. शेष कहीं आने जाने पर धूप से बचाव के लिये सेवकों की पूरी फ़ौज लगा दी. खाने में अधिक से अधिक मिठाईयों का उपयोग होने लगा. और उधार तो देना चालू रखा लेकिन तकादा करना बंद कर दिया. धीरे धीरे छोटे सेठ की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी. व्यापार भी साथ नहीं दे पा रहा था. तब उसे चौथी सलाह की याद आयी. उसने दिमाग लगाया कि मकराना तो स्थान का नाम है, जहाँ से संगमरमर का पत्थर निकलता है...लगता है पिता जी चाहते थे कि मैं पत्थर निकलवाने का व्यापर करूं तो उसमें लाभ होगा. बस वह अपना पैत्रक व्यवसाय बंद करके, शेष पूँजी लेकर नया व्यापर करने के लिये मकराना पहुँच गया. इस नये व्यापार से अनभिज्ञ होने के कारण शीघ्र ही वह अपनी बचीखुची पूँजी भी गँवा बैठा और घोर गरीबी को प्राप्त हुआ.

ज्ञानी बताते हैं कि गरीबी जीने का तरीका सिखा देती है. छोटे सेठ को भी गरीबी ने कई बातें सिखा दीं. वह अब मेहनत मजदूरी करके अपना और परिवार का पेट पालने लगा. जैसे तैसे समय बीत रहा था कि पिता जी के एक पुराने मित्र जो व्यवसाय के सिलसिले में कभी कभी नगर आते थे, घर पर आये. उन्होंने जब छोटे सेठ की दुर्दशा देखी तो बड़े आश्चर्य से पूछा कि सेठ जी के ज़माने में तो सब बात ठीक थी! अचानक ये गरीबी कैसे आ गयी? उत्तर में छोटे सेठ ने पूरी कहानी सुनायी और सलाहों का कागज दिखाया. मित्र सेठ जी की बुद्धिमत्तता एवं तौर तरीकों से अच्छी तरह परिचित था. उसे सेठ जी के सन्देश को समझने में देर नहीं लगी. पिता के मित्र ने छोटे सेठ को सलाहों का दूसरा अर्थ समझाना प्रारम्भ किया.

'छाँव में जाना छाँव में आना' का अर्थ है कि अपने काम पर सुबह तभी निकल जाना जब कि धूप न निकली हो और शाम को तब वापस आना जब धूप ढल जाए. 'मीठा खाना' का अर्थ है कि भोजन तभी करना जब इतनी भूख लगी हो कि कैसा भी भोजन स्वादिष्ट लगे. 'उधार दे कर मांगना नहीं' का अर्थ है कि ऐसा उधार नहीं देना है, जिसे मांगना पड़े. उधार वही देना है जो बिना मांगे ही वापस आ जाये. मित्र बोला कि अगर तुम्हें इन तीन सलाहों का मतलब और उनका महत्व अच्छी तरह समझ में आ गया हो तो मैं तुम्हें सेठ जी की चौथी सलाह का अर्थ बताऊं. छोटा सेठ बोला कि हाँ कुछ दिन की गरीबी ने ही मुझे इन बातों का महत्त्व अच्छी तरह समझा दिया है, आप तो इस चौथी सलाह का अर्थ बताइये जिसने कि मेरा सबसे अधिक नुकसान किया है. पिता के मित्र ने बताया कि 'मकराने में गढ़ा है, निकाल लेना' का अर्थ है कि तुम्हारे घर में किसी किसी जगह मकराने का संगमरमर लगा हुआ है. सेठ जी उसके अन्दर पर्याप्त धन छुपा कर गए हैं. तुम्हें तो वह धन प्राप्त करना है और पहले बतायी गयी सलाहों के अनुसार जीवन यापन करना है. ऐसा करोगे तो तुम्हारे जीवन में कोई समस्या नहीं आयेगी.


कहानी कैसी लगी? Comment जरूर करें. साथ में ये भी पढ़ लीजिये...कुछ काम ही देगा.

उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि न च मनोरथै,
न  हि   सुप्तस्य  सिंघस्य प्रवशति मुखे मृगः
Keywords: Story, Advise, Hindi, Management, Ideal

Sunday, August 7, 2011

आज फ्रेंडशिप डे है.

आज जबकि सारी दुनिया फ्रेंडशिप डे मना रही है, मुझे विचार आया कि क्यों न दोस्ती की एक कहानी पोस्ट करूँ. हम विचारों का आदान प्रदान करते ही मित्रतावश हैं. अन्यथा आदान प्रदान करने के लिए कन्फ्यूजन क्या कम हैं..! तो सुद्ध हिंदी में समझिये कि दोस्ती कैसी होती है?

एक राजा था और एक था राजकुमार. राजा राजकाज में व्यस्त रहता था और राजकुमार.? राजकुमार का क्या है वो तो अभी 'अंडर ट्रेनिंग' था. उसके तो मजे थे. ढेर सारे मित्र और मस्ती.. मित्र भी होंगे  और मस्ती भी होगी तो पैसे भी खर्च होंगे. अब राजकुमार से आगे कोई और मित्र तो खर्च कर नहीं सकता. इससे राजपरिवार और राजकुमार दोनों के सम्मान में समस्या आ सकती थी. फिर धनवान राजकुमार अगर मित्र है तो किसी और को खर्च करने की आवश्यकता क्या थी..? मस्ती, मित्रता और खर्च के सिलसिले चल रहे थे. एक दिन खजांची ने राजा को बताया कि खजाना खाली हो रहा है. पिछले कुछ दिनों से आमदनी तो उतनी ही है लेकिन खर्चे अधिक हो रहे हैं. राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि राजकुमार साहब की पॉकेटमनी का बोझ खजाने पर भारी पड़ रहा है...!

राजा ने राजकुमार को बुलाया और अनाप शनाप खर्चों का कारण पूछा. राजा ने पूछा कि आखिर वह इतने पैसों का करता क्या है? राजकुमार ने अपनी समस्या बताई कि उसके अधिकतर पैसे मित्रों के ऊपर खर्च हो जाते है. वह इन दिनों मित्र बनाने में लगा हुआ है, जिसमें कि उसका कोई सानी नहीं है.. राजा बोला वाह, मित्र तो अच्छे ही होते हैं. मुझे लगता है कि तुमने बहुत से मित्र बना लिए हैं. आखिर कितने मित्र होंगे तुम्हारे? राजकुमार बोला मित्र तो हजारों हैं..... राजा को बहुत आश्चर्य हुआ..! वह बोला कि बहुत उन्नति की है तुमने..! हजारों मित्र तो महान लोगों के भी नहीं बन पाते हैं, तुमने पता नहीं कैसे यह कमाल कर लिया? ..मैं तो पूरी जिंदगी में केवल डेढ़ मित्र ही बना पाया हूँ..! अब आश्चर्य चकित होने की बारी राजकुमार की थी.. "डेढ़ मित्र..! वो कैसे होते हैं?" राजकुमार ने पूछा. राजा बोला वो मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा, पहले तो तुम अपने मित्रों से मुझे मिलवाओ. आज रात में हम तुम्हारे मित्रों से मिलने चलेंगे. लेकिन तुम अभी उन्हें इस विषय में मत बताना. हमें आज उनकी जांच भी करनी है.

आधी रात को दोनों अपने घोड़ों पर बैठ कर मित्रों के परीक्षण के लिए निकल पड़े. राजकुमार सबसे पहले अपने सबसे अधिक विस्वासपात्र मित्र के घर पहुंचा. उसने घर के बाहर खड़े होकर मित्र को आवाज लगाई. अन्दर मित्र ने जब राजकुमार की आवाज़ सुनी तो उसने अपनी पत्नी से कहा, " यह तो राजकुमार की आवाज़ है. पता नहीं इतनी रात में क्या सनक सवार हुई है? तुम तो उसको बोल दो कि मैं घर पर नहीं हूँ, कहीं गया हुआ हूँ, और एक दो दिन बाद ही वापस आऊंगा." पत्नी ने बंद दरवाजे के अन्दर से ही कहा की वह तो घर पर नहीं हैं और एक दो दिन बाद वापस आयेंगे. राजा और राजकुमार तो पता कर के ही चले थे की कौन मित्र घर पर है और कौन नहीं. राजा ने राजकुमार से कहा, "क्या और भी कोई मित्र है जिस पर इतनी रात को तुम भरोसा कर सकते हो?" राजकुमार बोला, "नहीं, यह तो मेरा सबसे विस्वासपात्र था. दो जिस्म एक जान टाइप. जब यही फेल हो गया तो बाकियों के हाल भी मैं समझ गया. अब तो आप अपने मित्रों से मिलाइए." राजा मुस्कराया और बोला, "चलो पहले मैं तुम्हें अपने आधे मित्र से मिलाता हूँ. मुझे भी वर्षों हो गए उसके हालचाल नहीं लिए"..! 

दोनों एक साधारण से मकान के बाहर पहुंचे. राजकुमार को बहुत अजीब लगा की इतना साधारण आदमी भी राजा साहब का मित्र हो  सकता है. राजा ने घर के बाहर खड़े होकर मित्र को आवाज़ लगाई. अन्दर मित्र ने जब राजा की आवाज़ सुनी तो अपनी पत्नी से बोला, "यह तो राजा साहब की आवाज़ है. इतनी रात में राजा साहब आये हैं तो बात कुछ गंभीर ही होगी. तू पहले तो मेरी तलवार दे और जल्दी से सारे पैसे और गहने एक पोटली में बांध और ये बता कि खाने लायक क्या रखा है तेरे पास.? पत्नी बोली आटे के लड्डू बनाये थे सो रखे हैं. मित्र बोला वो भी ले ले...

तलवार हाथ में लेकर वह मित्र बाहर आया और बोला, "इतनी रात में, राजा साहब..! क्या बात है? देखिये अगर भूख लगी हो तो लड्डू खाइए और पानी पीजिये तब तक मेरी पत्नी आपके लिए खाना बना देगी. अगर पैसों की जरूरत आ पड़ी हो तो पैसे और गहने ले जाइए, मैं अभी अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाता हूँ कल तक और व्यवस्था हो जायेगी. ..और यदि किसी ने आपके सम्मान में त्रुटि की हो तो आप यहाँ बैठिये, मैं अभी उसका सिर काट कर आपके पास ले आता हूँ." राजा मुस्कराया और बोला, "नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो आज रात्रि में नगर भ्रमण पर निकला था तो सोचा क्यों न राजकुमार को भी आप से परिचित करवा दूँ." राजा और राजकुमार लड्डू पानी कर के वहां से वापस आ गए.
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राजकुमार का तो दिमाग ही हिला हुआ था. महल आकर बड़ी हिम्मत कर के उसने राजा से पूरे मित्र के बारे में पूछा. राजा बोला कि उससे मिलना तो बहुत ही कठिन है. लेकिन मैं उसे याद रखूं न रखूं वह मुझे याद रखता है. मुझे माँगने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. लेकिन वह जान जाता है. वह मेरी सब जरूरतों को पूरा करता है... अक्सर ज्ञानी उसे भगवान कहते हैं.




अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनं.
अधनस्य कुतो मित्रं अमित्रस्य कुतो सुखं.