आज जबकि सारी दुनिया फ्रेंडशिप डे मना रही है, मुझे विचार आया कि क्यों न दोस्ती की एक कहानी पोस्ट करूँ. हम विचारों का आदान प्रदान करते ही मित्रतावश हैं. अन्यथा आदान प्रदान करने के लिए कन्फ्यूजन क्या कम हैं..! तो सुद्ध हिंदी में समझिये कि दोस्ती कैसी होती है?
एक राजा था और एक था राजकुमार. राजा राजकाज में व्यस्त रहता था और राजकुमार.? राजकुमार का क्या है वो तो अभी 'अंडर ट्रेनिंग' था. उसके तो मजे थे. ढेर सारे मित्र और मस्ती.. मित्र भी होंगे और मस्ती भी होगी तो पैसे भी खर्च होंगे. अब राजकुमार से आगे कोई और मित्र तो खर्च कर नहीं सकता. इससे राजपरिवार और राजकुमार दोनों के सम्मान में समस्या आ सकती थी. फिर धनवान राजकुमार अगर मित्र है तो किसी और को खर्च करने की आवश्यकता क्या थी..? मस्ती, मित्रता और खर्च के सिलसिले चल रहे थे. एक दिन खजांची ने राजा को बताया कि खजाना खाली हो रहा है. पिछले कुछ दिनों से आमदनी तो उतनी ही है लेकिन खर्चे अधिक हो रहे हैं. राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि राजकुमार साहब की पॉकेटमनी का बोझ खजाने पर भारी पड़ रहा है...!
राजा ने राजकुमार को बुलाया और अनाप शनाप खर्चों का कारण पूछा. राजा ने पूछा कि आखिर वह इतने पैसों का करता क्या है? राजकुमार ने अपनी समस्या बताई कि उसके अधिकतर पैसे मित्रों के ऊपर खर्च हो जाते है. वह इन दिनों मित्र बनाने में लगा हुआ है, जिसमें कि उसका कोई सानी नहीं है.. राजा बोला वाह, मित्र तो अच्छे ही होते हैं. मुझे लगता है कि तुमने बहुत से मित्र बना लिए हैं. आखिर कितने मित्र होंगे तुम्हारे? राजकुमार बोला मित्र तो हजारों हैं..... राजा को बहुत आश्चर्य हुआ..! वह बोला कि बहुत उन्नति की है तुमने..! हजारों मित्र तो महान लोगों के भी नहीं बन पाते हैं, तुमने पता नहीं कैसे यह कमाल कर लिया? ..मैं तो पूरी जिंदगी में केवल डेढ़ मित्र ही बना पाया हूँ..! अब आश्चर्य चकित होने की बारी राजकुमार की थी.. "डेढ़ मित्र..! वो कैसे होते हैं?" राजकुमार ने पूछा. राजा बोला वो मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा, पहले तो तुम अपने मित्रों से मुझे मिलवाओ. आज रात में हम तुम्हारे मित्रों से मिलने चलेंगे. लेकिन तुम अभी उन्हें इस विषय में मत बताना. हमें आज उनकी जांच भी करनी है.
आधी रात को दोनों अपने घोड़ों पर बैठ कर मित्रों के परीक्षण के लिए निकल पड़े. राजकुमार सबसे पहले अपने सबसे अधिक विस्वासपात्र मित्र के घर पहुंचा. उसने घर के बाहर खड़े होकर मित्र को आवाज लगाई. अन्दर मित्र ने जब राजकुमार की आवाज़ सुनी तो उसने अपनी पत्नी से कहा, " यह तो राजकुमार की आवाज़ है. पता नहीं इतनी रात में क्या सनक सवार हुई है? तुम तो उसको बोल दो कि मैं घर पर नहीं हूँ, कहीं गया हुआ हूँ, और एक दो दिन बाद ही वापस आऊंगा." पत्नी ने बंद दरवाजे के अन्दर से ही कहा की वह तो घर पर नहीं हैं और एक दो दिन बाद वापस आयेंगे. राजा और राजकुमार तो पता कर के ही चले थे की कौन मित्र घर पर है और कौन नहीं. राजा ने राजकुमार से कहा, "क्या और भी कोई मित्र है जिस पर इतनी रात को तुम भरोसा कर सकते हो?" राजकुमार बोला, "नहीं, यह तो मेरा सबसे विस्वासपात्र था. दो जिस्म एक जान टाइप. जब यही फेल हो गया तो बाकियों के हाल भी मैं समझ गया. अब तो आप अपने मित्रों से मिलाइए." राजा मुस्कराया और बोला, "चलो पहले मैं तुम्हें अपने आधे मित्र से मिलाता हूँ. मुझे भी वर्षों हो गए उसके हालचाल नहीं लिए"..!
दोनों एक साधारण से मकान के बाहर पहुंचे. राजकुमार को बहुत अजीब लगा की इतना साधारण आदमी भी राजा साहब का मित्र हो सकता है. राजा ने घर के बाहर खड़े होकर मित्र को आवाज़ लगाई. अन्दर मित्र ने जब राजा की आवाज़ सुनी तो अपनी पत्नी से बोला, "यह तो राजा साहब की आवाज़ है. इतनी रात में राजा साहब आये हैं तो बात कुछ गंभीर ही होगी. तू पहले तो मेरी तलवार दे और जल्दी से सारे पैसे और गहने एक पोटली में बांध और ये बता कि खाने लायक क्या रखा है तेरे पास.? पत्नी बोली आटे के लड्डू बनाये थे सो रखे हैं. मित्र बोला वो भी ले ले...
तलवार हाथ में लेकर वह मित्र बाहर आया और बोला, "इतनी रात में, राजा साहब..! क्या बात है? देखिये अगर भूख लगी हो तो लड्डू खाइए और पानी पीजिये तब तक मेरी पत्नी आपके लिए खाना बना देगी. अगर पैसों की जरूरत आ पड़ी हो तो पैसे और गहने ले जाइए, मैं अभी अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाता हूँ कल तक और व्यवस्था हो जायेगी. ..और यदि किसी ने आपके सम्मान में त्रुटि की हो तो आप यहाँ बैठिये, मैं अभी उसका सिर काट कर आपके पास ले आता हूँ." राजा मुस्कराया और बोला, "नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो आज रात्रि में नगर भ्रमण पर निकला था तो सोचा क्यों न राजकुमार को भी आप से परिचित करवा दूँ." राजा और राजकुमार लड्डू पानी कर के वहां से वापस आ गए.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
राजकुमार का तो दिमाग ही हिला हुआ था. महल आकर बड़ी हिम्मत कर के उसने राजा से पूरे मित्र के बारे में पूछा. राजा बोला कि उससे मिलना तो बहुत ही कठिन है. लेकिन मैं उसे याद रखूं न रखूं वह मुझे याद रखता है. मुझे माँगने की जरूरत भी नहीं पड़ती है. लेकिन वह जान जाता है. वह मेरी सब जरूरतों को पूरा करता है... अक्सर ज्ञानी उसे भगवान कहते हैं.
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनं.
अधनस्य कुतो मित्रं अमित्रस्य कुतो सुखं.