Wednesday, September 21, 2011

छाँव में जाना छाँव में आना.

लीजिये साहब पहले तो आप ये सलाहें पढिये. अगर आप इन पर आचरण कर सके तो एक-एक सलाह लाखों की हो सकती है.

१. छाँव में जाना छाँव में आना.
२. मीठा खाना.
३. उधार दे कर मांगना नहीं.
४. मकराने में गढ़ा है निकाल लेना.

क्या बात है? .... चौंक गए? कुछ अजीब है ना...पहली बार जब मैंने किसी जगह इन सलाहों का स्टीकर देखा तो मैं भी चौंक गया था. भला हो उस आदमी का जिसने इन सलाहों की कहानी सुनायी. तो यदि आप ये अमूल्य सलाहें समझना चाहते हैं तो उस कहानी को पढिये.

एक सेठ जी थे. और एक उनका पुत्र था. सेठ जी मंझे हुए व्यापारी थे. घर पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी ही रहती थी. पुत्र इकलौता था सो लाड़ प्यार का मजा उठाता रहता था. कभी कुछ सीखने की इच्छा रहती नहीं थी. अचानक किसी बीमारी के चलते सेठ जी को यह महसूस हुआ की अब उनका समय नजदीक ही है. सेठ जी को चिंता हुई कि उन्होंने अपने पुत्र को तो कुछ सिखाया नहीं है. उनके बाद वह व्यापार को कैसे संभालेगा? और जीवन का फ़लसफ़ा इतनी जल्दी सिखाया भी नहीं जा सकता....सोच विचार करके उन्होंने ये चार सलाहें एक कागज पर लिखीं, और अपने पुत्र को बुला कर कहा कि यदि मेरी मृत्यु हो जाये तो तुम इस कागज को पढ़ना और  इस में लिखी सलाहों पर अमल करना. तुम्हारे जीवन में कोई समस्या नहीं आयेगी. शीघ्र ही वह समय आ गया जब सेठ जी ने इस दुनिया को अलविदा कहा. संस्कारों से निवृत होकर छोटे सेठ ने पिता के दिये हुए कागज को पढ़ा तो उसने अपने लिये इन चार सलाहों को लिखा पाया. पहली तीन सलाहें पढ़ते ही उसे अपने प्रति पिता का प्रेम याद आ गया. उसने सोचा कि पिता जी नहीं चाहते थे कि उनका इकलौता लाड़ला बेटा जीवन में कोई कष्ट उठाये इसलिये हमेशा छाँव में ही आने जाने, मीठा खाने और उधार दिये पैसे को माँगने के चक्कर में न पड़ने की सलाह देकर गये हैं. चौथी सलाह उसको समझ में नहीं आयी साथ ही उसे समझने की कोई जरूरत भी महसूस नहीं हुयी. उसे लगा कि फिलहाल तीन सलाहें ही उसके जीवन को आराम और खुशियों से भरने के लिये पर्याप्त थीं. उसे तो बस शीघ्र ही सलाहों पर अमल करते हुए कारोबार संभालना चाहिए.

पहली सलाह पर अमल करते हुये छोटे सेठ ने दिन में निकलना कम कर दिया. नगर की जिन सड़कों पर उसका रोज आना जाना होता था, उन पर छत बनवा दी. शेष कहीं आने जाने पर धूप से बचाव के लिये सेवकों की पूरी फ़ौज लगा दी. खाने में अधिक से अधिक मिठाईयों का उपयोग होने लगा. और उधार तो देना चालू रखा लेकिन तकादा करना बंद कर दिया. धीरे धीरे छोटे सेठ की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी. व्यापार भी साथ नहीं दे पा रहा था. तब उसे चौथी सलाह की याद आयी. उसने दिमाग लगाया कि मकराना तो स्थान का नाम है, जहाँ से संगमरमर का पत्थर निकलता है...लगता है पिता जी चाहते थे कि मैं पत्थर निकलवाने का व्यापर करूं तो उसमें लाभ होगा. बस वह अपना पैत्रक व्यवसाय बंद करके, शेष पूँजी लेकर नया व्यापर करने के लिये मकराना पहुँच गया. इस नये व्यापार से अनभिज्ञ होने के कारण शीघ्र ही वह अपनी बचीखुची पूँजी भी गँवा बैठा और घोर गरीबी को प्राप्त हुआ.

ज्ञानी बताते हैं कि गरीबी जीने का तरीका सिखा देती है. छोटे सेठ को भी गरीबी ने कई बातें सिखा दीं. वह अब मेहनत मजदूरी करके अपना और परिवार का पेट पालने लगा. जैसे तैसे समय बीत रहा था कि पिता जी के एक पुराने मित्र जो व्यवसाय के सिलसिले में कभी कभी नगर आते थे, घर पर आये. उन्होंने जब छोटे सेठ की दुर्दशा देखी तो बड़े आश्चर्य से पूछा कि सेठ जी के ज़माने में तो सब बात ठीक थी! अचानक ये गरीबी कैसे आ गयी? उत्तर में छोटे सेठ ने पूरी कहानी सुनायी और सलाहों का कागज दिखाया. मित्र सेठ जी की बुद्धिमत्तता एवं तौर तरीकों से अच्छी तरह परिचित था. उसे सेठ जी के सन्देश को समझने में देर नहीं लगी. पिता के मित्र ने छोटे सेठ को सलाहों का दूसरा अर्थ समझाना प्रारम्भ किया.

'छाँव में जाना छाँव में आना' का अर्थ है कि अपने काम पर सुबह तभी निकल जाना जब कि धूप न निकली हो और शाम को तब वापस आना जब धूप ढल जाए. 'मीठा खाना' का अर्थ है कि भोजन तभी करना जब इतनी भूख लगी हो कि कैसा भी भोजन स्वादिष्ट लगे. 'उधार दे कर मांगना नहीं' का अर्थ है कि ऐसा उधार नहीं देना है, जिसे मांगना पड़े. उधार वही देना है जो बिना मांगे ही वापस आ जाये. मित्र बोला कि अगर तुम्हें इन तीन सलाहों का मतलब और उनका महत्व अच्छी तरह समझ में आ गया हो तो मैं तुम्हें सेठ जी की चौथी सलाह का अर्थ बताऊं. छोटा सेठ बोला कि हाँ कुछ दिन की गरीबी ने ही मुझे इन बातों का महत्त्व अच्छी तरह समझा दिया है, आप तो इस चौथी सलाह का अर्थ बताइये जिसने कि मेरा सबसे अधिक नुकसान किया है. पिता के मित्र ने बताया कि 'मकराने में गढ़ा है, निकाल लेना' का अर्थ है कि तुम्हारे घर में किसी किसी जगह मकराने का संगमरमर लगा हुआ है. सेठ जी उसके अन्दर पर्याप्त धन छुपा कर गए हैं. तुम्हें तो वह धन प्राप्त करना है और पहले बतायी गयी सलाहों के अनुसार जीवन यापन करना है. ऐसा करोगे तो तुम्हारे जीवन में कोई समस्या नहीं आयेगी.


कहानी कैसी लगी? Comment जरूर करें. साथ में ये भी पढ़ लीजिये...कुछ काम ही देगा.

उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि न च मनोरथै,
न  हि   सुप्तस्य  सिंघस्य प्रवशति मुखे मृगः
Keywords: Story, Advise, Hindi, Management, Ideal

3 comments:

  1. Beautiful! Enjoyed your whole article for the first time. Now this is what I call use of simple words. I don't think I had to stop on any word to know its meaning.

    Moreover, the story is full of value. It is true that sons don't give much attention to their father's advice while he is alive or til they see the world from the poverty's point of view, or from where the father actually saw the world and began. So they can really understand the advice by seeing things only from there and this story proves that.

    Lastly the advice, nothing could be better. One can follow it without much thought.

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  2. By the way can you tell me where to learn/use this Hindi font. Sometimes I have to write a word or a line in Hindi at my blog bigtamasha.com

    In fact sometime back I requested you to translate a line into Hindi for me but you did not reply. Perhaps the message did not reach you?

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  3. @authorharb Many thanks for your comments. they are like becons for me. You should enable transliteration in 'Hindi' on Settings-> Basic-> Global Settings. Then you ll find a tag 'अ' on the control panel of blog post.

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कृपया उत्साहवर्धन भी कर दीजिये।